- Type: Paperback.
- Publisher: Rajkamal Prakashan; First edition (31 May 2022)
- Language : Hindi
अस्सी
की होने चली दादी ने विधवा होकर परिवार से पीठ कर खटिया पकड़ ली। परिवार
उसे वापस अपने बीच खींचने में लगा। प्रेम, वैर, आपसी नोकझोंक में खदबदाता
संयुक्त परिवार। दादी बजि़द कि अब नहीं उठूँगी। फिर इन्हीं शब्दों की ध्वनि
बदलकर हो जाती है अब तो नई ही उठूँगी। दादी उठती है। बिलकुल नई। नया बचपन,
नई जवानी, सामाजिक वर्जनाओं-निषेधों से मुक्त, नए रिश्तों और नए तेवरों
में पूर्ण स्वच्छन्द। हर साधारण औरत में छिपी एक असाधारण स्त्री की महागाथा
तो है ही रेत-समाधि, संयुक्त परिवार की तत्कालीन स्थिति, देश के हालात और
सामान्य मानवीय नियति का विलक्षण चित्रण भी है। और है एक अमर प्रेम प्रसंग व
रोज़ी जैसा अविस्मरणीय चरित्र। कथा लेखन की एक नयी छटा है इस उपन्यास में।
इसकी कथा, इसका कालक्रम, इसकी संवेदना, इसका कहन, सब अपने निराले अन्दाज़
में चलते हैं। हमारी चिर-परिचित हदों-सरहदों को नकारते लाँघते। जाना-पहचाना
भी बिलकुल अनोखा और नया है यहाँ। इसका संसार परिचित भी है और जादुई भी,
दोनों के अन्तर को मिटाता। काल भी यहाँ अपनी निरंतरता में आता है। हर होना
विगत के होनों को समेटे रहता है, और हर क्षण सुषुप्त सदियाँ। मसलन, वाघा
बार्डर पर हर शाम होनेवाले आक्रामक हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी राष्ट्रवादी
प्रदर्शन में ध्वनित होते हैं ‘कत्लेआम के माज़ी से लौटे स्वर’, और
संयुक्त परिवार के रोज़मर्रा में सिमटे रहते हैं काल के लम्बे साए। और
सरहदें भी हैं जिन्हें लाँघकर यह कृति अनूठी बन जाती है, जैसे स्त्री और
पुरुष, युवक और बूढ़ा, तन व मन, प्यार और द्वेष, सोना और जागना, संयुक्त और
एकल परिवार, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान, मानव और अन्य जीव-जन्तु (अकारण
नहीं कि यह कहानी कई बार तितली या कौवे या तीतर या सडक़ या पुश्तैनी दरवाज़े
की आवाज़ में बयान होती है) या गद्य और काव्य : ‘धम्म से आँसू गिरते हैं
जैसे पत्थर। बरसात की बूँद।’